Is Pyaar ko kya naam dun - 1 in Hindi Fiction Stories by Vaidehi Vaishnav books and stories PDF | इस प्यार को क्या नाम दूं ? - 1

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इस प्यार को क्या नाम दूं ? - 1

(1)

यह कहानी है एक चुलबुली सी लड़की और धीर गंभीर लड़के की। लड़की के लिए प्रेम संसार की सबसे खूबसूरत भावना है वहीं लड़के को प्रेम शब्द से ही नफ़रत है। जिंदगी के एक मोड़ पर दोनों टकराते है और फिर शुरू होती है इन दोनों की तक़रार । यह देखना रोचक होगा कि प्रेम जीतता है या प्रेम से नफ़रत करने वाला ।

कहानी के मुख्य पात्र :-

अर्नव - नायक

खुशी - नायिका

देवयानी - अर्नव की नानी

मनोहर - अर्नव के मामा

मनोरमा - अर्नव की मामी

अंजली - अर्नव की बहन

श्याम - अर्नव के जीजाजी

आकाश - अर्नव का ममेरा भाई

मधुमती - खुशी की बुआ

पायल - खुशी की बहन

गरिमा - खुशी की मौसी

शशि - खुशी के मौसा।

संगीत की तेज़ धुन से पूरा कमरा गूंज रहा था। धुन इतनी अधिक तेज़ थी कि जिसके कारण कमरे की खिड़कियों के शीशे हिल रहे थे, न सिर्फ़ खिड़कियों के शीशे बल्कि कमरे में रखा हर एक सामान इस तरह से थरथरा रहा था, मानो हर एक सामान संगीत लहरियों पर थिरक रहा हो। सामान के साथ ही एक छरहरी काया भी थिरक रही थी।

संगीत में पूरी तरह मग्न हाथों में झाड़ू को गिटार की तरह लिए हुए वह लड़की किसी पॉप स्टार की नकल करते हुए अपनी ही धुन में व्यस्त थी। उसे देखकर यह कहना मुश्किल था कि वह साफ़-सफ़ाई में जुटी हुई है। म्युज़िक उसका शौक था। उसके हर दिन की शुरुआत धूम-धड़ाके के साथ ही होती थी। बचपन से ही वह सिंगर बनने का सपना देखा करती थी और सपना देखते हुए ही वह अब 22 वर्ष की हो गई है। उम्र में तो वह बढ़ती चली गई लेक़िन उसका बचपना ज़रा भी कम नहीं हुआ। उसकी शरारतों से सभी के चेहरे खिल जाते सिवाय उसकी अपनी मौसी गरिमा के। किसी रमता जोगी कि भांति वह अपनी ही मस्ती में व्यस्त थी।

तभी कमरे का दरवाजा खटखटाने की आवाज़ आई। आवाज़ सुनकर वह दरवाजे की ओर जैसे ही आगे बड़ी झाड़ू के रेशे उसकी आँखों मे लग गए। झाड़ू हाथ में लिए हुए ही बड़बड़ाते हुए वह दरवाजे तक गई। आँखे मलते हुए उसने नाराजगी जताते हुए दरवाजा खोला और झाड़ू को तलवार की तरह तानकर बोली - " क्या जीजी फिर से आ गई तुम डिस्टर्ब करने "?

एक सख़्त आवाज़ उसके कानों में गूँजी - " अब बस यही देखना बाक़ी रह गया था । रुक क्यों गई ख़ुशी ?

आवाज़ सुनकर ख़ुशी की दोनों आंखे खुल गई उसने तुरंत झाड़ू नीचे की ओर फेंक दिया और दोनों हाथ पीछे करते हुए कहा - मौसी जी आप..? मुझे लगा जीजी है।

गरिमा - "तुम्हें क्या लगा उससे मुझे कोई मतलब नहीं, यदि मुझे यह झाड़ू लग जाता तो तुम्हारी ख़ैर नहीं थीं "

मुस्कुराते हुए अपनी दोनों कलाइयों को गरिमा के गले मे डालते हुए ख़ुशी बोली - ऐसा कैसे हो सकता है मौसी, मेरे रहते कोई आपका बाल भी बांका कर दे ।

गरिमा ( चिढ़ते हुए ) - चल परे हट । तेरी बातों के जाल में मैं उलझने वाली नहीं हुई। मैं तो बस यह कहने आई थी कि आज पायल को लड़के वाले देखने आ रहे हैं। उस दिन की तरह पायल के साथ मत रहना कि लड़के वाले तुम्हें पसन्द कर ले। वो लोग जब आए तब तक घर के बाहर ही रहना और ध्यान रहे यह बात पायल को पता न चलने पाए कि मैंने तुम्हें बाहर जाने का कहा।

उदास स्वर में ख़ुशी ने कहा - जी मौसी जी ।

पता नहीं किस घड़ी पैदा हुई थीं, जन्म लेते माँ को खा गई अब मेरी छाती पर मुंग दल रही है- बड़बड़ाते हुए गरिमा वहाँ से चली गई।

ख़ुशी की आंखों में आँसू छलक आए। गरीमा अक्सर जली कटी बातों से ख़ुशी के चंचल मन को आहत कर दिया करती थी।

आँखों से आँसू पोंछते हुए ख़ुशी ख़ुद को ही डांट लगाते हुए बोली - मैं भी कितनी बुद्धू हूँ ..? आज तो कितना अच्छा दिन है, शगुन की घड़ियां आने वाली है। अगर जीजी का रिश्ता तय हो गया तो ख़ूब सारी खुशियाँ घर आएगी और मैं हूँ कि ज़रा सी बात पर गंगा-जमुना बहाने लगीं।

हँसकर ख़ुशी ने झाड़ू उठाई और दुगने उत्साह से सफ़ाई करने लगीं। इस बार ख़ुशी ने मेहंदी है रचने वाली, हाथों में गहरी लाली गाना ट्यून किया और अपनी जीजी की शादी के सपनो में खोई हुई तेज़ गति से काम करने लगीं।

" अच्छा जी तो यहाँ मेहंदी रचाई जा रहीं है "- दरवाज़े की चोखट से टिकी, हाथ बांधे हुए पायल ने कहा।

फूलदान में फूलों को लगा रहीं ख़ुशी ने जब अपनी प्यारी जीजी पायल की आवाज़ सुनी तब उसने फूलदान से फूलों को निकाल लिया और पायल के सामने अदब से घुटनों के बल बैठकर फूलों को पायल की ओर बढ़ाते हुए कहा- राजकुमारीजी इस नाचीज़ की ओर से तोहफा कुबूल करें ।

पायल ने झुककर फूल लिए और ख़ुशी का कान पकड़ते हुए उसे खड़ा किया और टीचर के लहज़े में बोली- तुम्हारी शरारतें दिन-प्रतिदिन बढ़ती ही जा रही है।

कान सहलाते हुए ख़ुशी बोली- क्या जीजी, हर वक़्त टीचर बनी रहती हो ? ये न तो आपका स्कूल है और न ही मैं आपकी स्टूडेंट। क्या जीजाजी को भी अपना स्टूडेंट बनाओगी ? देखना उन्हें किसी बात पर मुर्गा न बना देना। वरना उन्हें पूरा दिन बांग देना पड़ेगी- कहकर ख़ुशी सोफ़े के पीछे चली गई।

रुक तुझे अभी मज़ा चखाती हूं, अभी से तुझे अपने जीजाजी की फिक्र होने लगी। कहकर पायल ख़ुशी के पीछे दौड़ी। दोनों बहनें सोफ़े के चक्कर लगाने लगी। जब दोनों ही थक गई तो एक साथ निढाल होकर सोफ़े पर बैठ गई। दोनो की सांस धौकनी की तरह चल रही थीं।

सोफ़े से सर को टिकाए दीवार पर लगी अपनी और पायल की तस्वीर को देखते हुए ख़ुशी ने कहा- जीजी काश हम दोनों की शादी एक ही घर में हो जाए। फिर वहाँ भी हम ऐसे ही साथ रहेंगे। तुम्हारे बिना सब कुछ सूना हो जाएगा। ख़ुशी का गला भर आया, आगे वह कुछ न कह सकी । पायल की आँखे भी ख़ुशी की बात सुनकर नम हो गई।

दोनों बहनें एक-दूसरे से लिपट गई। पायल ने खुद को संभाला और ख़ुशी की आँखों से आँसू पोछते हुए कहने लगी- पगली, तेरे बिना मैं बिल्कुल वैसे ही अधूरी हूँ जैसे जल बिन मछली। हम हमेशा ऐसे ही साथ रहेंगे। चल अब तू भी अपना हुलिया बदल और तैयार होकर जल्दी से मुझे भी तैयार कर देना। क्या पता लड़के के साथ उसका छोटा भाई भी आए- चुटकी लेते हुए पायल ने कहा।

ख़ुशी को मौसी की कही बात याद आ गई। उसकी आँखों में उदासी तैर गई। अपनी उदासी को मुस्कुराहट से छिपाने की कोशिश करते हुए ख़ुशी बोली- जीजी मैंने भोलेनाथ से मन्नत मांगी थीं कि इस बार लड़के वाले आए तो मेरी जीजी को दुल्हनिया बनाकर ले जाएं। इसलिए मैं तैयार होकर पहले मन्दिर जाउंगी। तब तक तुम तैयार हो जाना।

पायल (चिंतित स्वर में)- जल्दी लौट आना ख़ुशी। तुझे तो पता ही है कि मैं कितनी नर्वस हो जाती हूँ।

ख़ुशी पायल के कंधों पर हाथ रखते हुए कहती है- बी पॉज़िटिव एंड स्ट्रांग। मुझे यकीन है इस बार तुम्हारा रिश्ता होकर ही रहेगा।

साफ़-सफ़ाई करने के बाद ख़ुशी नहाने चली जाती है। पायल अपने कमरे में अलमारी से सलवार सूट निकाल कर देखती है और पसन्द न आने पर सूट को पलंग पर फेंक देती है। तभी गरिमा हाथ में ज्यूस लिए कमरे में आती है, वह पायल की दुविधा को समझ जाती है औऱ हँसते हुए उसके पास जाकर कहती है-

"क्या हुआ पायल ?" कोई भी ड्रेस पसन्द नहीं आई। ये लो तुम ज्यूस पियो, ड्रेस मैं देखती हूँ।

पायल गरिमा के हाथ से ज्यूस का गिलास ले लेती है औऱ थककर पनंग पर बैठ जाती है।

गरिमा पलंग पर बिखरे सूट में से एक सूट निकालकर पायल को दिखाते हुए कहती है- ये देखों कितना सुंदर डिजाइन है औऱ रंग भी तुम पर ख़ूब फबेगा।

पायल मुँह सिकोड़कर कहती है- नहीं अम्मा, मेरा रंग साँवला है और यह गहरा रंग मुझ पर अच्छा नहीं लगेगा। ऐसे रंग ख़ुशी पर जंचते है।

ख़ुशी का नाम सुनकर गरिमा की भृकुटि तन गई।

वह कहने लगीं- तुमने खुद को लेकर गलत धारणा बना ली है पायल। तुम ख़ुशी से कही अधिक सुंदर हो। न वो यहाँ रहती न तुम्हारे मन में ऐसे भाव आते।

गरिमा की बातें सुनकर पायल खड़ी हो जाती है वह बड़े ही स्नेह से गरिमा को समझाते हुए कहती है- अम्मा, गलत धारणा तो आपने ख़ुशी के लिए बना रखी है। बचपन से लेकर आज तक उसने आपको माँ की तरह माना, आपका सम्मान भी किया, आपकी हर बात मानी, पर आप ही उसे अपना नहीं मान पाई।

गरिमा ने अपनी आँखें नीचे कर ली। पायल की बातों से उसे ग्लानि महसूस हुई। उसने पायल की बातों को अनसुना करतें हुए पलंग से एक हल्के गुलाबी रंग का सूट उठाया और पायल से कहने लगी- देखो ! यह कितना प्यारा लग रहा है। इसमें तुम परी के जैसी दिखोगी। अब जल्दी से तैयार हो जाओ, लड़के वाले 12 बजे तक आ जाएंगे। गरिमा कमरे से बाहर चली जाती है। पायल गरिमा को जाते हुए देखती है फिर कमरे में रखी स्टडी टेबल पर रखी हुई भोलेनाथ की प्रतिमा को देखकर मन ही मन उनसे विनती करती है- हे शिव जी! अम्मा के मन में ख़ुशी के लिए जितनी भी नफ़रत भरी हुई है उसे प्यार में बदल देना।

उधर ख़ुशी जल्दी से नहाकर तैयार हो जाती है। वह पायल से छुपते-छुपाते पूजाघर की ओर जाती है। घर में चल रही तैयारियां व रसोईघर से आ रही खीर की खुशबू उसके मन को ललचाने लगती है। वह पूजाघर के अंदर से ही बाहर चल रही तैयारियों का जायज़ा लेती है। जब हॉल में टी टेबल पर गरिमा फल की टोकरी रखने आती है तो उन्हें देखकर ख़ुशी पूजाघर के दरवाजों पर लगे हुए पर्दो की ओट में छुप जाती है। तभी उसके मन में बिजली की भांति एक विचार आता है जिससे उसका चेहरा चमक उठता है। अपने दाहिने हाथ की तर्जनी अंगुली को दाँतो के बीच रखकर वह विचार को मूर्त रूप देने के लिए योजना बनाने लगती है। वह खुद से ही बड़बड़ाते हुए कहती है- यह जबरदस्त आईडिया है। मैं पूजाघर में छुप जाती हूँ और यही रहकर जीजी को दूर से देख लुंगी। वह ख़ुद को अपनी योजना में सफल पाती है औऱ आँख बंद करके हाथ जोड़ते हुए कहती है- थैंक यू भोले बाबा इतना अच्छा उपाय सुझाने के लिए। वह आँख खोलकर देखती है तो सामने गरिमा को देखकर चौंक जाती है।

गरिमा खुशी से कहती है- तुम अब तक यहीं हो?

ख़ुशी हड़बड़ी में पूजा की थाली उठाकर कहती है। मौसी मैं बस जा ही रही थीं। वह जाने लगती है। उसे भरोसा था कि मौसी उसे जाने से रोक देगी। वह धीरे-धीरे कदम बढ़ाती है। उसके कदम आगे बढ़ते जाते है पर कान पीछे ही रहते है। जब उसे गरिमा की आवाज़ सुनाई नहीं देती है तब वह मुड़कर देखती है। किसी सख़्त इंसान की तरह गरिमा पत्थर की मूर्ति सी खड़ी रहती है।

ख़ुशी मायूस होकर घर से बाहर निकल जाती है।

रास्ते में उसे अपनी दोस्त मिलती है जो कि एक गाय थी, जिसका एक पैर टूटा हुआ था। खुशी की गाय के प्रति गहरी संवेदना थी। वह जब भी घर से बाहर जाती तब गाय के लिए कुछ न कुछ ले आती और फिर अपने हाथों से बड़े ही लाड़-प्यार से उसे घास या अपने घर से लाई हुई सामग्री खिलाती। गाय का नाम ख़ुशी ने गंगू रखा था। गाय के अलावा ख़ुशी के कई अन्य दोस्त भी थे, जैसे शिव मंदिर के प्रांगण में अकेला खड़ा पीपल का पेड़ हरि, पान की गुमटी के आस-पास रहने वाला कुत्ता टिंकू, घर की छत पर आने वाली गिलहरियाँ, उपवनों के फूलों पर मंडराती तितलियां आदि सभी से ख़ुशी की घनिष्ठ मित्रता थी। सबके नामकरण ख़ुशी ही करती और सभी खुशी द्वारा उन्ही नामों से पुकारे जाने पर ख़ुशी की ओर चुम्बक की तरह खींचे चले आते। जानवरों से ख़ुशी के लगाव को देखकर भी गरिमा खीझ जाया करती थी। इसलिए ख़ुशी गुपचुप तरीके से ही अपने अजीज़ दोस्तों से मिलती थी। आज ख़ुशी का मन बहुत अधिक खिन्न था जिसके कारण उसे सामने से आती गंगू दिखाई तो दी पर ख़ुशी ने रोज़ की तरह गंगू से चर्चा नहीं की। वह तो बस किसी सम्मोहित कर दिए इंसान की तरह शिव मंदिर की तरफ़ अपने कदमों को तेज़ गति से बढ़ाते हुए चली जा रही थी। कुछ ही देर में वह शिव मंदिर पहुंच जाती है। मन्दिर के प्रांगण में आज रोजाना के मुकाबले कम भीड़ थीं। ख़ुशी पीपल के पास चली जाती है। पेड़ के चारों ओर चबूतरा बना हुआ था। पूजा की थाली चबूतरे पर रखकर ख़ुशी गर्दन उठाएं पीपल के पेड़ से बातचीत करने लगती है। वह अपनी पीड़ा पीपल के साथ साझा करती है। वह पीपल को बताती है कि बिना किसी गलती के कैसे उसे घर से बाहर जाने का कह दिया गया। वह पीपल से पूछती है कि क्या तुम्हें भी यहीं लगता है कि पायल का रिश्ता उसकी उपस्थिति के कारण नहीं होता। पीपल बिल्कुल शांत खड़ा रहता है। मानो हवा भी ख़ुशी की पीड़ा को महसूस करके रुक गई जिसके कारण पीपल के सभी पत्ते शांत हो गए। जैसे पीपल गम्भीरता से खुशी की बातों को सुन रहा हो और उसे सांत्वना दे रहा हो।

अपनी आपबीती सुना देने पर ख़ुशी का मन हल्का हो जाता है। वह सामान्य हो जाती है और मुस्कुरा कर पीपल से कहती है। पता है हरि, जीजी कह रही थी कि हम दोनों हमेशा साथ रहेंगे। क्या सच में यह सम्भव है? क्या सच में आज लड़के का भाई भी साथ आया होगा? अगर आया होगा भी तो मुझसे कैसे मिलेगा?

ख़ुशी पीपल के पेड़ से बात कर रही होती है, तभी एक कार तेज़ रफ़्तार से उसके नजदीक से गुज़रती है। कार की रफ़्तार आँधी की तरह ही थी जिसके साथ ख़ुशी का दुप्पटा भी चला गया। अचानक से हुई इस घटना के कारण ख़ुशी हतप्रभ रह गई। उसे लगा किसी मनचले लड़के ने उसके साथ शरारत की औऱ उसका दुप्पटा खींच लिया।

गुस्से से ख़ुशी का चेहरा लाल हो गया। वह कार की दिशा कि तरफ़ तेज़ी से आगे बढ़ने लगी। कार खुशी को शिव मंदिर के ठीक सामने खड़ी हुई दिखी। कार के साइड मिरर पर ख़ुशी का दुपट्टा लहरा रहा था। ख़ुशी को अब भी कुछ समझ नहीं आया। उसने अपना दुप्पटा वहां से सावधानी पूर्वक निकाला और मन्दिर की सीढ़ियां चढ़ने लगीं।

मन्दिर की दहलीज के अंदर लम्बी व सुडौल कदकाठी का एक नौजवान लड़का खड़ा था। उसके पहनावे से लग रहा था कि वह कोई अमीर बिज़नेसमैन है। उसने मन्दिर के अंदर भी जूते पहने हुए थे जिसे देखकर ख़ुशी का पारा चढ़ गया।

उसने आव देखा न ताव वह लड़के को झिड़कते हुए बोली-

ऐ मिस्टर ! होंगे आप कहीं के नवाबज़ादे। यहाँ तो सिर्फ़ हमारे भोलेनाथ की ही हुकूमत चलती है। मन्दिर में पहली बार आए हो क्या ? या किसी ने यह बताया नहीं कि मन्दिर में जूते उतारकर जाना चाहिए।